हाल Poetry (page 24)

बना हुआ है हमारा कसी बहाने से

राना आमिर लियाक़त

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

रम्ज़ी असीम

तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया

राम रियाज़

मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले

राम रियाज़

हम तो दिन-रात इसी सोच में मर जाएँगे

राम नाथ असीर

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

दर्द-ए-हयात-ए-इश्क़ है नग़्मा-ए-जाँ-गुदाज़ में

राम कृष्ण मुज़्तर

मुझे मिली है अगर इन्फ़िरादियत की सनद

राम दास

वो दिलबर हैं तो गोया दिलबरी करनी पड़ेगी

रख़्शंदा नवेद

मिरी दास्ताँ मुझे ही मिरा दिल सुना के रोए

राजेन्द्र कृष्ण

लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है

राजेश रेड्डी

दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ

राजेश रेड्डी

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

दुख से ग़ैरों के पिघलता कौन है

राजेन्द्र कलकल

एक चेहलुम पर

राजा मेहदी अली ख़ाँ

मैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ

राज नारायण राज़

न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा

रईस सिद्दीक़ी

तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते

रईस सिद्दीक़ी

किसी का जिस्म हुआ जान-ओ-दिल किसी के हुए

रईस सिद्दीक़ी

गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है

रईस फ़रोग़

हम अपने हाल-ए-परेशाँ पे बारहा रोए

रईस अमरोहवी

ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ

रईस अमरोहवी

कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई

रईस अमरोहवी

ऐ दिल शरीक-ए-ताइफ़ा-ए-वज्द-ओ-हाल हो

रईस अमरोहवी

उड़ाते आए हैं आप अपने ख़्वाब-ज़ार की ख़ाक

रहमान हफ़ीज़

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद

राही मासूम रज़ा

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

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