अधिकार Poetry (page 7)

शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है

शहरयार

मुनकिर-ए-हक़

शहराम सर्मदी

लौह-ए-अय्याम

शहराम सर्मदी

ख़ला सा कहीं है

शहराम सर्मदी

हुवल-इश्क़

शहराम सर्मदी

सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा

शहराम सर्मदी

मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था

शहराम सर्मदी

सराब-ए-शब भी है ख़्वाब-ए-शिकस्ता-पा भी है

शाहिदा हसन

यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे

शाहिद ज़की

बस रूह सच है बाक़ी कहानी फ़रेब है

शाहिद ज़की

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

आज फिर रू-ब-रू करोगे तुम

शाहिद कमाल

रात है शहर-ए-बुताँ है और हम

शाहिद इश्क़ी

महताब है न अक्स-ए-रुख़-ए-यार अब कोई

शाहिद इश्क़ी

वो एक ख़्वाब कि आँखों में जगमगा रहा है

शहबाज़ ख़्वाजा

मैं उस की चश्म का बीमार-ए-ना-तवाँ हूँ तबीब

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया

शाह नसीर

ग़र्क़ न कर दिखला कर दिल को कान का बाला ज़ुल्फ़ का हल्क़ा

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

मुझे साक़ी-ए-चश्म-ए-यार ने अजब एक जाम पिला दिया

शाह आसिम

क्या कहूँ तुम से मैं यारो कौन हूँ

शाह आसिम

ब-चशम-ए-हक़ीक़त जहाँ देखता हूँ

शाह आसिम

पानियों से रेत पर जो आ गया मेरी तरह

शफ़ीउल्लाह राज़

जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो

शफ़ीक़ रामपुरी

ज़िंदगी तुझ से हमें अब कोई शिकवा ही नहीं

शफ़ीक़ देहलवी

ज़बाँ ख़मोश रहे तर्क-ए-मुद्दआ न करे

शायर फतहपुरी

गुल-ए-ख़ुश-नुमा के लिबास में कि शुआ-ए-नूर में ढल के आ

शायर फतहपुरी

नज़रों से गुलों की नौ-निहालो

शाद लखनवी

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