रात है शहर-ए-बुताँ है और हम
रात है शहर-ए-बुताँ है और हम
आरज़ू-ए-बे-कराँ है और हम
कौन गुज़रा है सर-ए-राह-ए-ख़याल
दूर तक इक कहकशाँ है और हम
रात की ढलती जवानी के रफ़ीक़
सिर्फ़ इक पीर-ए-मुग़ाँ है और हम
बुझ चले हैं सारे यारों के चराग़
अब चराग़ों का धुआँ है और हम
हर ज़माने में मिली हक़ को सलीब
ये क़मीस-ए-ख़ूँ-चकाँ है और हम
बे-सुतूँ तक़दीर-ए-हर-फ़रहाद है
इक मज़ाक़-ए-ख़ुसरवाँ है और हम
जिस में जुरअत हो वो मुड़ कर देख ले
एक उम्र-ए-राएगाँ है और हम
(422) Peoples Rate This