प्रेम Poetry (page 50)

कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सुन सुन के चुप हैं ताना-ए-अग़्यार क्या करें

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब

इफ़्तिख़ार आज़मी

दर्द अब दिल की दवा हो जैसे

इफ़्तिख़ार आज़मी

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

है ये शहर-ए-इश्क़ याँ आब-ओ-हवा कुछ और है

इफ़्फ़त अब्बास

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया

इब्न-ए-सफ़ी

राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं

इब्न-ए-सफ़ी

आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान

इब्न-ए-सफ़ी

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

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