जान Poetry (page 62)

जब्र को इख़्तियार कौन करे

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

तेरे आलम का यार क्या कहना

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

पाया तिरे कुश्तों ने जो मैदान-ए-बयाबाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

किस के हाथों बिक गया किस के ख़रीदारों में हूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए

आग़ा हज्जू शरफ़

इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

अफ़ज़ल परवेज़

न रोना रह गया बाक़ी न हँसना रह गया बाक़ी

अफ़ज़ाल नवेद

छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है

अफ़ज़ल ख़ान

शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना

अफ़ज़ल ख़ान

अगर हम गीत न गाते

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

इस तरह सताया है परेशान किया है

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

कहो बुलबुल को ले जावे चमन से आशियाँ अपना

आफ़ताब शाह आलम सानी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है

आफ़ताब हुसैन

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

बे-क़रारी

अफ़रोज़ आलम

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