जाम Poetry (page 19)

जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई

हफ़ीज़ बनारसी

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

नीलो

हबीब जालिब

मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश

हबीब मूसवी

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

हबीब मूसवी

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

हबीब मूसवी

दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस

हबीब मूसवी

उस को देखा तो नाम भूल गया

हबीब कैफ़ी

उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

यूँ तो दिल हर कदाम रखता है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा

गोविन्द गुलशन

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई

ग़ुबार भट्टी

मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम

ग़ालिब

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