जाम Poetry (page 20)

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया

ग़ालिब

तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है

ग़ालिब

शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया

ग़ालिब

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है

ग़ालिब

इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ

जोर्ज पेश शोर

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए

फ़ितरत अंसारी

बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया

फ़ितरत अंसारी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने

फ़िगार उन्नावी

दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल

फ़िगार उन्नावी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

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