पत्र Poetry (page 13)

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

तेरे सूरज को तिरी शाम से पहचानते हैं

फ़रहत एहसास

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

फ़रहत एहसास

फिर वही मौसम-ए-जुदाई है

फ़रहत एहसास

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

हम अपना इस्म ले कर शहर-ए-सिफ़त से निकले

फ़रहत एहसास

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा

फ़राग़ रोहवी

रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर

फ़ानी बदायुनी

ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर

फ़ानी बदायुनी

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है

फ़ानी बदायुनी

चार-सू है बड़ी वहशत का समाँ

फ़हमीदा रियाज़

मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा

फ़हमी बदायूनी

परिंदे सहमे सहमे उड़ रहे हैं

फ़हमी बदायूनी

ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुम्ताज़ है सरापा

फ़ाएज़ देहलवी

एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर

फ़ाएज़ देहलवी

मय-ख़ाना है बिना-ए-शर-ओ-ख़ैर तो नहीं

एजाज़ वारसी

हवा के वास्ते इक काम छोड़ आया हूँ

एजाज़ रहमानी

यहीं था बैठा हुआ दरमियाँ कहाँ गया मैं

एजाज़ गुल

बीमारी की ख़बर

एहतिशाम हुसैन

ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में

दिवाकर राही

ग़म हमारा गुलाब हो जाए

दिनेश ठाकुर

इक हरे ख़त में कोई बात पुरानी पढ़ना

दिनेश नायडू

क्या चाहा था क्या सोचा था क्या गुज़री क्या बात हुई

देवमणि पांडेय

सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं

दीपक क़मर

निगाह-ए-यार सूँ हासिल है मुझ कूँ मय-नोशी

दाऊद औरंगाबादी

मस्त हूँ मस्त हूँ ख़राब ख़राब

दाऊद औरंगाबादी

ख़िर्क़ा-पोशी में ख़ुद-नुमाई है

दाऊद औरंगाबादी

जब वो मह-ए-रुख़्सार यकायक नज़र आया

दाऊद औरंगाबादी

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

दाग़ देहलवी

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