पत्र Poetry (page 14)

क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में

दाग़ देहलवी

क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में

दाग़ देहलवी

जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब

दाग़ देहलवी

हो चुका ऐश का जल्सा तू मुझे ख़त भेजा

दाग़ देहलवी

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

दाग़ देहलवी

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

दाग़ देहलवी

इधर देख लेना उधर देख लेना

दाग़ देहलवी

हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से

दाग़ देहलवी

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम

दाग़ देहलवी

जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

क़ासिद तू ख़त को लाया है क्यूँकर खुला हुआ

बिल्क़ीस बेगम

रिस रहा है मुद्दत से कोई पहला ग़म मुझ में

बिलाल अहमद

दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है

बेख़ुद देहलवी

न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

बेखुद बदायुनी

रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे

बेदिल हैदरी

पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो

बेदम शाह वारसी

अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है

बेदम शाह वारसी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

ये आरज़ू है कि वो नामा-बर से ले काग़ज़

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

शहर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से चल कर पत्थरों के दरमियाँ

बशीर फ़ारूक़ी

मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

क्या तुझ को लिखूँ ख़त हरकत हाथ से गुम है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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