ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में
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वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम
इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में
बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो ऐ 'राही'
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
सोचने की ये बात है 'राही'
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
इस से पहले कि लोग पहचानें
कुछ आदमी समाज पे बोझल हैं आज भी
हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने
वक़्त को बस गुज़ार लेना ही
सवाल ये है कि इस पुर-फ़रेब दुनिया में
अबस इल्ज़ाम मत दो मुश्किलात-ए-राह को 'राही'