सोचने की ये बात है 'राही'
सोचते ही रहे तो क्या होगा
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बहुत आसान है दो घूँट पी लेना तो ऐ 'राही'
इस से पहले कि लोग पहचानें
वक़्त को बस गुज़ार लेना ही
ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है
वक़्त बर्बाद करने वालों को
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
ऐन-फ़ितरत है कि जिस शाख़ पे फल आएँगे
कुछ आदमी समाज पे बोझल हैं आज भी
इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में