सपना Poetry (page 55)

मोहब्बत का अजब ज़ाविया है

हसन रिज़वी

खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए

हसन रिज़वी

कभी शाम-ए-हिज्र गुज़ारते कभी ज़ुल्फ़-ए-यार सँवारते

हसन रिज़वी

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

इस दर्जा मेरी ज़ात से उस को हसद हुआ

हसन रिज़वी

गई रुतों को भी याद रखना नई रुतों के भी बाब पढ़ना

हसन रिज़वी

रुत है ऐसी कि दर-ओ-बाम न साए होंगे

हसन निज़ामी

पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया

हसन निज़ामी

सरा-ए-दिल में जगह दे तो काट लूँ इक रात

हसन नईम

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

एक दरख़्त एक तारीख़

हसन नईम

बे-इल्तिफ़ाती

हसन नईम

रात गुज़री कि शब-ए-वस्ल का पैग़ाम मिला

हसन नईम

न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया

हसन नईम

मैं किस वरक़ को छुपाऊँ दिखाऊँ कौन सा बाब

हसन नईम

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया

हसन नईम

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी

हसन नईम

जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए

हसन नईम

गया वो ख़्वाब-ए-हक़ीक़त को रू-ब-रू कर के

हसन नईम

दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे

हसन नईम

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

हसन नईम

बिछ्ड़ें तो शहर भर में किसी को पता न हो

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

आरज़ू थी कि तिरा दहर भी शोहरा होवे

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

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