होंठ Poetry (page 33)

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ

फ़ाज़िल जमीली

नुत्क़ से लब तक है सदियों का सफ़र

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

छाँव को तकते धूप में चलते एक ज़माना बीत गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तुझ से दिल में जो गिला था वो न लाए लब पर

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

बटन

फ़े सीन एजाज़

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

मैं बोली तेरे लब पर है हँसी मेरी

फ़ौज़िया रबाब

हर एक आँख में आँसू हर एक लब पे फ़ुग़ाँ

फ़सीह अकमल

किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है

फ़सीह अकमल

जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है

फ़सीह अकमल

सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम का

फ़रियाद आज़र

सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है

फ़रताश सय्यद

वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर

फ़ारूक़ शफ़क़

तमाम शहर में उस जैसा ख़स्ता-हाल न था

फ़ारूक़ बख़्शी

अपने दरिया की प्यास

फ़ारिग़ बुख़ारी

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही

फ़ारिग़ बुख़ारी

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

मेरा दिल-ए-नाशाद जो नाशाद रहेगा

फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर

फ़रहत कानपुरी

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

तमाम शहर की ख़ातिर चमन से आते हैं

फ़रहत एहसास

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