लहू Poetry (page 22)

फ़सील-ए-जिस्म की ऊँचाई से उतर जाएँ

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

न सुब्ह वुसअ'त न शाम वुसअ'त

ग़ुफ़रान अमजद

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

ज़बाँ साकित हो क़त-ए-गुफ़्तुगू हो

ग़ुबार भट्टी

बज़्म-ए-आलम में सदा हम भी नहीं तुम भी नहीं

ग़नी एजाज़

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की

ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

ग़ालिब

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

ग़ालिब

समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे

गौहर होशियारपुरी

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

आठों पहर लहू में नहाया करे कोई

फ़ुज़ैल जाफ़री

हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है

फ़ुज़ैल जाफ़री

आठों पहर लहू में नहाया करे कोई

फ़ुज़ैल जाफ़री

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया

फ़ज़्ल ताबिश

मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ

फ़ाज़िल जमीली

ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ

फ़ाज़िल जमीली

तोहफ़ा-ए-ग़म भी मिला दर्द की सौग़ात के बा'द

फ़ाज़िल अंसारी

वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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