लहू Poetry (page 23)

राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी

फ़सीह अकमल

होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

थे उस के हाथ लहू में हमारे ग़र्क़ मगर

फ़र्रुख़ जाफ़री

कटी पहाड़ सी शब इंतिज़ार करते हुए

फ़र्रुख़ जाफ़री

इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं

फ़ारूक़ नाज़की

तआ'क़ुब

फ़ारूक़ मुज़्तर

वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला

फ़ारूक़ बख़्शी

मशवरा किस ने दिया था कि मसीहाई कर

फ़ारूक़ बख़्शी

जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है

फ़ारूक़ अंजुम

जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है

फ़ारूक़ अंजुम

उसे भूलने का सितम कर रहे हैं

फरीहा नक़वी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

दिल ने इमदाद कभी हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी

फ़रहत एहसास

देखो अभी लहू की इक धार चल रही है

फ़रहत एहसास

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

फ़रहत एहसास

हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए

फ़रहत अब्बास

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी

फ़रहान सालिम

अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से

फ़रहान सालिम

सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ

फ़रीद परबती

तक़ाज़ा

फ़रीद इशरती

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