लहू Poetry (page 24)

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

जिस दिन से कोई ख़्वाहिश-ए-दुनिया नहीं रखता

फ़राग़ रोहवी

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

फ़ानी बदायुनी

आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें

फ़ानी बदायुनी

असली रूप

फख्र ज़मान

वो पहले अंधे कुएँ में गिराए जाते हैं

फख्र ज़मान

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ये फ़स्ल उमीदों की हमदम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

यहाँ से शहर को देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम ये कहते हो अब कोई चारा नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शीशों का मसीहा कोई नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रक़ीब से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग है दिल का मिरे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

पास रहो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

पाँव से लहू को धो डालो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नज़्म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात मिरी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लेनिन-ग्राड का गोरिस्तान

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लौह-ओ-क़लम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लहू का सुराग़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क्या करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुर्शीद-ए-महशर की लौ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़त्म हुई बारिश-ए-संग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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