गंतव्य Poetry (page 6)

हम हैं बस इतने ही साहिल-आश्ना

उम्मीद फ़ाज़ली

चले जो धूप में मंज़िल थी उन की

उमर अंसारी

मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का

उमर अंसारी

बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए

उमैर मंज़र

हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया

उमैर मंज़र

निगाहें नीची रखते हैं बुलंदी के निशाँ वाले

तुर्फ़ा क़ुरैशी

इश्क़ में हर तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं सुर्ख़ आँसू बहाए तो मैं क्या करूँ

तुर्फ़ा क़ुरैशी

हर तरफ़ फैला हुआ बे-सम्त बे-मंज़िल सफ़र

तुफ़ैल चतुर्वेदी

न जाने क्या कमी थी चाहतों में

त्रिपुरारि

चमन में बर्क़ कभी आशियाँ से दूर नहीं

तिश्ना बरेलवी

छब्बीस जनवरी

तिलोकचंद महरूम

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

तिलोकचंद महरूम

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

तिलोकचंद महरूम

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

दिल है बेताब नज़र खोई हुई लगती है

तिलक राज पारस

मेरी सूरत साया-ए-दीवार-ओ-दर में कौन है

तौसीफ़ तबस्सुम

मेरी सूरत साया-ए-दीवार-ओ-दर में कौन है

तौसीफ़ तबस्सुम

क्या बताऊँ कि है किस ज़ुल्फ़ का सौदा मुझ को

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

आइना मिलता तो शायद नज़र आते ख़ुद को

तौसीफ़ तबस्सुम

फूल मुरझा जाएँगे काँटे लगे रह जाएँगे

तसनीम आबिदी

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

ख़्वाब पहले ले गया फिर रत-जगा भी ले गया

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

ज़ेहन में हो कोई मंज़िल तो नज़र में ले जाऊँ

तसव्वुर ज़ैदी

तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें

तारिक़ नईम

ग़म की दीवार को मैं ज़ेर-ओ-ज़बर कर न सका

तारिक़ मतीन

ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है

तनवीर सिप्रा

ज़ेहन ज़िंदा है मगर अपने सवालात के साथ

तनवीर अहमद अल्वी

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