गंतव्य Poetry (page 5)

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

याद करना हर घड़ी उस यार का

वली मोहम्मद वली

नादान होशियार बने जिन के रूप से

वाजिद सहरी

दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े

वजद चुगताई

वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन का

वाहिद प्रेमी

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

दीवानों को मंज़िल का पता याद नहीं है

वहीद अख़्तर

क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं

वफ़ा सिद्दीक़ी

तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे

विश्वनाथ दर्द

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो

विपुल कुमार

नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे

विजय शर्मा अर्श

बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है

विजय शर्मा अर्श

बातों बातों में ही उनवान बदल जाते हैं

विजय शर्मा अर्श

ये क़दम क़दम कशाकश दिल बे-क़रार क्या है

वारिस किरमानी

लाख नादाँ हैं मगर इतनी सज़ा भी न मिले

वारिस किरमानी

वही हादसों के क़िस्से वही मौत की कहानी

वफ़ा बराही

अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं

उषा भदोरिया

काश उस बुत को भी हम वक़्फ़-ए-तमन्ना देखें

उरूज ज़ैदी बदायूनी

अश्क पर गुदाज़-दिल हाशिया चढ़ाता है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

मक़्तल-ए-जाँ से कि ज़िंदाँ से कि घर से निकले

उम्मीद फ़ाज़ली

हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे

उम्मीद फ़ाज़ली

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