मौज Poetry (page 13)

हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ

रज़ा लखनवी

उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे

रज़ा जौनपुरी

सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को

रविश सिद्दीक़ी

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

जब कभी यादों का दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

रौनक़ दकनी

कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा

रउफ़ ख़लिश

शम्अ' में सोज़ की वो ख़ू है न परवाने में

रशीद शाहजहाँपुरी

ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग

राशिद मतीन

नदी को देख कर

राशिद अनवर राशिद

नज़र से दूर रहे मुझ को आज़माए भी

राशिद अनवर राशिद

इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी

राशिदा माहीन मलिक

गुम्बद-ए-ज़ात में अब कोई सदा दूँ तो चलूँ

रशीद क़ैसरानी

दीप से दीप जलाओ तो कोई बात बने

रशीद क़ैसरानी

ताल सोचें न समुंदर सोचें

रशीद एजाज़

तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ

रसा चुग़ताई

होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़

राना आमिर लियाक़त

ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

इश्क़ की ऐसी शान तो होगी

रम्ज़ आफ़ाक़ी

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

मुस्तक़िल दीद की ये शक्ल नज़र आई है

राम कृष्ण मुज़्तर

ख़िरामाँ शाहिद-ए-सीमीं बदन है

राम कृष्ण मुज़्तर

ये ज़िंदगी तो मुसलसल सवाल करती है

रख़शां हाशमी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न क़ाएल होते हैं न ज़ाइल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

लिबास उस का अलामत की तरह था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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