मर Poetry (page 12)

यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए

साग़र निज़ामी

उस्ताद मर गए

साग़र ख़य्यामी

मुकालिमा

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

ट्रिप

सईदुद्दीन

नज़्म

सईदुद्दीन

नया फ़्रेम

सईदुद्दीन

लोहे का लिबास

सईदुद्दीन

मैं ज़िंदा हूँ

सईद नक़वी

पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे

सईद अख़्तर

दुरून-ए-चश्म हर इक ख़्वाब मर रहा है बस

सादिया सफ़दर सादी

फ़र्जाम

सादिक़

एक पुरानी नज़्म

सादिक़

दो ही किरदार थे कहानी में

सचिन शालिनी

ये सोच के राख हो गया हूँ

साबिर ज़फ़र

यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके

साबिर ज़फ़र

महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया

साबिर ज़फ़र

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

साबिर वसीम

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

साबिर वसीम

जो बू-ए-ज़िंदगी मुझे किरन किरन से आई है

साबिर आफ़ाक़ी

तुझे तलाश है जिस की गुज़र गया कब का

साबिर अदीब

तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है

सबा अकबराबादी

मोहब्बत में जीना नई बात है

साइल देहलवी

दवाम के दयार में

रियाज़ लतीफ़

वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए

रिन्द लखनवी

किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है

रिन्द लखनवी

छुप के घर ग़ैर के जाया न करो

रिन्द लखनवी

आज इंकार न फ़रमाइए आप

रिन्द लखनवी

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