मर Poetry (page 14)

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते

रशीद लखनवी

दिल हमारा जानिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम आएगा

रशीद लखनवी

डर नहीं थूकते हैं ख़ून जो दुख पाए हुए

रशीद लखनवी

हाँ अभी कुछ देर पहले शेर की गूँजी थी धाड़

रशीद अफ़रोज़

रास आया है मुझे वहशत में मर जाना मिरा

रसा रामपुरी

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

शाम से पहले घर गए होते

रसा चुग़ताई

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

हम तो दिन-रात इसी सोच में मर जाएँगे

राम नाथ असीर

हुक्म-ए-मुर्शिद पे ही जी उठना है मर जाना है

राकिब मुख़्तार

अजब नहीं है मुआलिज शिफ़ा से मर जाएँ

राकिब मुख़्तार

अना से देखो कितना भर गए हैं

रजनीश सचन

न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे

राजेन्द्र कृष्ण

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं

राजेश रेड्डी

कुछ इस क़दर मैं ख़िरद के असर में आ गया हूँ

राजेश रेड्डी

ख़ुद-कुशी

राजा मेहदी अली ख़ाँ

लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं

रईस फ़रोग़

अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन

रईस फ़रोग़

साँप वाली

रईस फ़रोग़

डॉक्टर फ़ानचो

रईस फ़रोग़

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

अजब सदा ये नुमाइश में कल सुनाई दी

इक़बाल साजिद

मोहब्बतों ने बड़ी हेर-फेर कर दी है

इक़बाल कैफ़ी

गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले

इंशा अल्लाह ख़ान

दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों

इंशा अल्लाह ख़ान

जैसा सोचो वैसा मतलब होता है

इनआम आज़मी

तेरे दिल से उतर चुका हूँ मैं

इमरान शनावर

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

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