लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
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ये सर्द रात कोई किस तरह गुज़ारेगा
मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ
कमरा
अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा कर
हवा ने बादल से क्या कहा है
आज की रात
फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में
दुनिया का वबाल भी रहेगा
देर तक मैं तुझे देखता भी रहा
ख़ानम-जान