मुझे न खोलो
मिरे अंधेरे में
एक लड़की
लिबास तब्दील कर रही है
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सच्चाई
अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई
जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए
दुनिया का वबाल भी रहेगा
ख़ानम-जान
शहर का शहर बसा है मुझ में
देर तक मैं तुझे देखता भी रहा
अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा कर
डॉक्टर फ़ानचो
आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को