मयस्सर Poetry (page 3)

सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर किसे जहान में है

शारिब मौरान्वी

यूँ ब-ज़ाहिर देखे तो यार सब

शम्स तबरेज़ी

आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है

शमीम रविश

हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाए हुए हैं

शाकिर ख़लीक़

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

बहुत घुटन है यहाँ पर कोई बचा ले मुझे

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले

शहज़ाद अहमद

ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली

शहरयार

तेरी साँसें मुझ तक आते बादल हो जाएँ

शहरयार

ख़ला सा कहीं है

शहराम सर्मदी

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

इक अज़ाब होता है रोज़ जी का खोना भी

शाहिद लतीफ़

कैसे तोड़ी गई ये हद्द-ए-अदब पूछते हैं

शाहिद जमाल

नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो

शाहिद इश्क़ी

हमारे हाल-ए-ज़बूँ पर मलाल है कितना

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

दीवार पे रक्खा हुआ मिट्टी का दिया मैं

सऊद उस्मानी

पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर

सरवत हुसैन

जंगल में कभी जो घर बनाऊँ

सरवत हुसैन

मेरा शुमार कर ले अदद के बग़ैर भी

सरदार अयाग़

इतनी क़ुर्बत भी नहीं ठीक है अब यार के साथ

सलीम सिद्दीक़ी

इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है

सलीम सिद्दीक़ी

अब शहर की और दश्त की है एक कहानी

सलीम शाहिद

'सलीम' दिल को मयस्सर सकूँ ज़रा न हुआ

सलीम अहमद

एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से

साहिर होशियारपुरी

नूह के बा'द

सहर अंसारी

चाँदनी को रसूल कहता हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

किस मुँह से ज़िंदगी को वो रख़्शंदा कह सकें

सादिक़ नसीम

मुख़्तसर ही सही मयस्सर है

साबिर

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