मयस्सर Poetry (page 7)

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

बस रंज की है दास्ताँ उन्वान हज़ारों

अज़हर हाश्मी

ये और बात है कि मदावा-ए-ग़म न था

अज़ीम मुर्तज़ा

फ़ुग़ाँ से तर्क-ए-फ़ुग़ाँ तक हज़ार तिश्ना-लबी है

अज़ीम मुर्तज़ा

जहाँ निफ़ाक़ के शो'ले मिलें बुझा के चलो

औलाद अली रिज़वी

इस गली से उस गली तक दौड़ता रहता हूँ मैं

अतीक़ुल्लाह

कीसा-ए-दरवेश में जो भी है ज़र उतना ही है

अतीक़ुल्लाह

सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ

अतहर नफ़ीस

फिर कोई नया ज़ख़्म नया दर्द अता हो

अतहर नफ़ीस

हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई

अता तुराब

रात वहशत से गुरेज़ाँ था मैं आहू की तरह

अता तुराब

मजबूरियाँ

असरार-उल-हक़ मजाज़

शैतान का फ़रमान

असरार जामई

ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह

असरा रिज़वी

क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ

असलम महमूद

तालिब हो वहाँ आन के क्या कोई सनम का

आसिफ़ुद्दौला

इक शहर ज़िया-बार यहाँ भी है वहाँ भी

अशहर हाशमी

निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे

असर लखनवी

पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ

आरज़ू लखनवी

ज़माना कुछ भी कहे तेरी आरज़ू कर लूँ

अरशद कमाल

कहाँ कहाँ से सुनाऊँ तुम्हें फ़साना-ए-शब

अरशद जमाल 'सारिम'

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

कोई भी शय हो मियाँ जान से प्यारी किसे है

अरशद अब्दुल हमीद

हिन्दोस्तान मेरा

अर्श मलसियानी

रूह के जलते ख़राबे का मुदावा भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

या ख़ुदा कुछ तो दर्द कम कर दे

आराधना प्रसाद

सुकून-ए-दिल न मयस्सर हुआ ज़माने में

अनवापुल हसन अनवार

ज़ोर से आँधी चली तो बुझ गए सारे चराग़

अनवर सदीद

तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर

अनवर सदीद

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