मयस्सर Poetry (page 8)

हमें क़रीना-ए-रंजिश कहाँ मयस्सर है

अनवर मसूद

क्यूँ किसी और को दुख दर्द सुनाऊँ अपने

अनवर मसूद

इस इब्तिदा की सलीक़े से इंतिहा करते

अनवर मसूद

ये ग़ज़ल की अंजुमन है ज़रा एहतिमाम कर लो

अनवर मोअज़्ज़म

सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के

अंजुम सलीमी

जिस को समझे थे तवंगर वो गदागर निकला

अनीस अंसारी

सुर्ख़ सितारा

आमिर उस्मानी

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अमीर मीनाई

हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा

अमीर इमाम

अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है

अंबरीन हसीब अंबर

नशात-ए-उमीद

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हुब्ब-ए-वतन

अल्ताफ़ हुसैन हाली

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी

अल्लामा इक़बाल

मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा

अल्लामा इक़बाल

जिब्रईल ओ इबलीस

अल्लामा इक़बाल

फ़रमान-ए-ख़ुदा

अल्लामा इक़बाल

हर इक मक़ाम से आगे गुज़र गया मह-ए-नौ

अल्लामा इक़बाल

खुले हैं मश्रिक-ओ-मग़रिब की गोद में गुलज़ार

अली सरदार जाफ़री

तसव्वुर मुन्कशिफ़-अज़-बाम हो जाने से डरता हूँ

अली मुज़म्मिल

मोहब्बत का रग-ओ-पै में मिरी रूह-ए-रवाँ होना

अलीम अख़्तर

मिला जो कोई यहाँ रम्ज़-आशना न मुझे

अख़्तर ज़ियाई

एक शाएरा की शादी पर

अख़्तर शीरानी

अगर बुलंदी का मेरी वो ए'तिराफ़ करे

अख़तर शाहजहाँपुरी

हिज्र इक हुस्न है इस हुस्न में रहना अच्छा

अख़्तर हुसैन जाफ़री

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

पहले हम इश्क़ किया करते थे

अख़्तर अमान

तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है

अहमद शहरयार

फैल रहा है ये जो ख़ाली होने का डर मुझ में

अहमद शहरयार

एक दरख़्वास्त

अहमद नदीम क़ासमी

तू ज़ियादा में से बाहर नहीं आया करता

अहमद कामरान

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