हमें क़रीना-ए-रंजिश कहाँ मयस्सर है
हम अपने बस में जो होते तिरा गिला करते
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
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Gulzar
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कब ज़िया-बार तिरा चेहरा-ए-ज़ेबा होगा
सुपर-मैन
माहिर-ए-अमराज़-ए-चश्म
पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी
शिकवा-ए-गर्दिश-ए-हालात लिए फिरता है
जो हँसना हँसाना होता है
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
दाख़िल-ए-दफ़्तर
सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं ये कमरे का दिया
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ