सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं ये कमरे का दिया
अपने साए को भी क्यूँ साथ जगाऊँ अपने
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3163) Peoples Rate This
कब ज़िया-बार तिरा चेहरा-ए-ज़ेबा होगा
अगले दिन कुछ ऐसे होंगे
थुरू-प्रॉपर चैनल
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिन
दोस्तो इंग्लिश ज़रूरी है हमारे वास्ते
बस यूँही इक वहम सा है वाक़िआ ऐसा नहीं
दुआ
जौहर ओ जवाहिर
कभी हो गया मयस्सर न हुआ कभी मयस्सर
माहिर-ए-अमराज़-ए-चश्म
पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'