मयस्सर Poetry (page 5)

इश्क़ आज़ार कर दिया जाए

हस्सान अहमद आवान

ऐसे कुछ लोग भी मिट्टी पे उतारे जाएँ

हस्सान अहमद आवान

महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक

हसरत मोहानी

ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की

हसरत मोहानी

सीना तो ढूँड लिया मुत्तसिल अपना हम ने

हसरत अज़ीमाबादी

राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल

हसरत अज़ीमाबादी

जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना

हसरत अज़ीमाबादी

है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला

हसरत अज़ीमाबादी

मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा

हसन नईम

कौन है जो न हुआ बंदिश-ए-ग़म से आज़ाद

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

की नज़र मैं ने जब एहसास के आईने में

हनीफ़ कैफ़ी

बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो

हम्माद नियाज़ी

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

हम्माद नियाज़ी

मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है

हमीदा शाहीन

पयाम-बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ

हैदर अली आतिश

पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ

हैदर अली आतिश

इक नया कर्ब मिरे दिल में जनम लेता है

हफ़ीज़ ताईब

अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं

गोविन्द गुलशन

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

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