पर्दाफाश Poetry (page 3)

शोख़ी ने तेरी लुत्फ़ न रक्खा हिजाब में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

बना हुस्न-ए-तकल्लुम हुस्न-ए-ज़न आहिस्ता आहिस्ता

शाज़ तमकनत

कनार-ए-बहर है देखूँगा मौज-ए-आब में साँप

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

फ़रेब-ए-नज़र

शमीम करहानी

ज़रा नक़ाब-ए-हसीं रुख़ से तुम उलट देना

शकील बदायुनी

नुमाइश-ए-अलीगढ़

शकील बदायुनी

ज़िंदगी का दर्द ले कर इंक़लाब आया तो क्या

शकील बदायुनी

ज़मीं पर फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया

शकील बदायुनी

तकमील-ए-शबाब चाहता हूँ

शकील बदायुनी

कब तक 'शकील' दिल को दुआ कीजिएगा आप

शकील बदायुनी

हर गोशा-ए-नज़र में समाए हुए हो तुम

शकील बदायुनी

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे

शकील बदायुनी

दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं

शकील बदायुनी

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका

शकेब जलाली

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा

शाहिद ग़ाज़ी

ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा

शाह नसीर

जुदा नहीं है हर इक मौज देख आब के बीच

शाह नसीर

उट्ठी है जब से दिल में मिरे इश्क़ की तरंग

शाह आसिम

वस्ल में बेकार है मुँह पर नक़ाब

शाद लखनवी

जान या दिल नज़्र करना चाहिए

शाद लखनवी

क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा

शाद अज़ीमाबादी

अब मुझ को क्या ख़बर वो यहाँ है भी या नहीं

शबनम शकील

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

शाद आरफ़ी

ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ

शाद आरफ़ी

मेरी क़िस्मत से क़फ़स का या तो दर खुलता नहीं

सेहर इश्क़ाबादी

हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें

सीमाब अकबराबादी

ब-क़ैद-ए-वक़्त ये मुज़्दा सुना रहा है कोई

सीमाब अकबराबादी

ग़ुंचे से मुस्कुरा के उसे ज़ार कर चले

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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