पर्दाफाश Poetry (page 10)

इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम

अली सरदार जाफ़री

अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा

अली सरदार जाफ़री

लुहार जानता नहीं

अली अकबर नातिक़

ए'तिमाद

अख़्तर-उल-ईमान

दिन ढला शब हुई चराग़ जले

अख़्तर ज़ियाई

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

बरखा-रुत

अख़्तर शीरानी

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

अख़्तर शीरानी

अगर वो अपने हसीन चेहरे को भूल कर बे-नक़ाब कर दे

अख़्तर शीरानी

कभी जो आँखों में पल-भर को ख़्वाब जागते हैं

अख़लाक़ बन्दवी

आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया

अकबर हैदराबादी

फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे

अकबर हैदराबादी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

मिल गया शरअ से शराब का रंग

अकबर इलाहाबादी

इक बंद हो गया है तो खोलेंगे बाब और

अजय सहाब

पढ़ो इबारत-ए-तख़्लीक़-ए-दर्द चेहरे पर

ऐनुद्दीन आज़िम

ग़म के बादल हैं ये ढल जाएँगे रफ़्ता रफ़्ता

अहमद शाहिद ख़ाँ

खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए

अहमद नदीम क़ासमी

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

अहमद हुसैन माइल

खड़े हैं मूसा उठाओ पर्दा दिखाओ तुम आब-ओ-ताब-ए-आरिज़

अहमद हुसैन माइल

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

अहमद हुसैन माइल

पर्दा-ए-महमिल उठे तो राज़-ए-वीराना खुले

अहमद फ़रीद

मुहासरा

अहमद फ़राज़

जब से में ने देखा है एक ख़ुशनुमा चेहरा

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली

आग़ा हश्र काश्मीरी

सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती

आग़ा हश्र काश्मीरी

मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

तिश्नगी बाक़ी रहे दीवानगी बाक़ी रहे

अफ़रोज़ तालिब

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

अदीम हाशमी

ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई

अदा जाफ़री

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