पर्दाफाश Poetry (page 9)

मुझ को ख़बर रही न रुख़-ए-बे-नक़ाब की

असग़र गोंडवी

मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में

असग़र गोंडवी

रुमूज़-ए-मोहब्बत

असर सहबाई

दिलों से यास-ओ-अलम के नक़ाब उतारो तो

अरशद सिद्दीक़ी

यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा

अरशद अली ख़ान क़लक़

जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा

अरशद अली ख़ान क़लक़

हुस्न हर हाल में है हुस्न परागंदा नक़ाब

अर्श मलसियानी

है देखने वालों को सँभलने का इशारा

अर्श मलसियानी

है देखने वालों को सँभलने का इशारा

अर्श मलसियानी

सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं

अर्श मलसियानी

आग ही आग है गुलशन ये कोई क्या जाने

अर्श मलसियानी

ये शहर है वो शहर कि जिस में हैं बे-वज्ह कामयाब चेहरे

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया

अनवर सहारनपुरी

जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में

अनवर सहारनपुरी

अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी

अनवर मिर्ज़ापुरी

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

मैं तो समझा था जिस वक़्त मुझ को वो मिलेंगे तो जन्नत मिलेगी

अनवर मिर्ज़ापुरी

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

ज़िंदगी अपनी ख़्वाब जैसी है

अनवर जमाल अनवर

क्या कहिए रू-ए-हुस्न पे आलम नक़ाब का

अंदलीब शादानी

जुनूँ का दौर है किस किस को जाएँ समझाने

आनंद नारायण मुल्ला

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

अमीर मीनाई

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

अमीर मीनाई

कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था

अमीर मीनाई

तशन्नुज

अमीक़ हनफ़ी

हश्र तक याँ दिल शकेबा चाहिए

अल्ताफ़ हुसैन हाली

मिरे लिए हैं मुसीबत ये आइना-ख़ाने

आलोक यादव

नूर-ए-हक़ बे-हिजाब इश्क़-अल्लाह

अलीमुल्लाह

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