हुस्न हर हाल में है हुस्न परागंदा नक़ाब
कोई पर्दा है न चिलमन ये कोई क्या जाने
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ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा
मेरा वतन
आग ही आग है गुलशन ये कोई क्या जाने
भारत के वीर सिपाही
ये दुनिया है उसे दार-उल-फ़ितन कहना ही पड़ता है
दर्द का हाल आह से पूछो
इक रौशनी सी दिल में थी वो भी नहीं रही
15 अगस्त (1949)