पर्दाफाश Poetry (page 4)

चेहरे पे न ये नक़ाब देखा

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हमारा शेर भी लौह-ए-तिलिस्म है शायद

सरफ़राज़ दानिश

चश्म-ए-तर है कोई सराब नहीं

संदीप कोल नादिम

कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया

सलीम शुजाअ अंसारी

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

इधर उधर से किताब देखूँ

सलीम मुहीउद्दीन

माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है

सख़ी लख़नवी

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

क्या मंज़िल-ए-ग़म सिमट गई है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

दिल इज़्तिराब में है जिगर इल्तिहाब में

साइब आसमी

तरह-ए-नौ

साहिर लुधियानवी

नूर-जहाँ के मज़ार पर

साहिर लुधियानवी

ख़ून फिर ख़ून है

साहिर लुधियानवी

एक शाम

साहिर लुधियानवी

नूर-ए-ईमाँ सुर्मा-ए-चश्म-ए-दिल-ओ-जाँ कीजिए

साहिर देहल्वी

कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था

साहिर देहल्वी

जसद ने जान से पूछा कि क़ल्ब-ए-बे-रिया क्या है

साहिर देहल्वी

तारीकियों का हिसाब

सहर अंसारी

इंतिज़ार

सहर अंसारी

हवस ओ वफ़ा की सियासतों में भी कामयाब नहीं रहा

सहर अंसारी

चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है

साग़र सिद्दीक़ी

ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है

साग़र सिद्दीक़ी

एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं

साग़र सिद्दीक़ी

चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है

साग़र सिद्दीक़ी

देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का

सफ़ी लखनवी

वो अंजुमन में रात अजब शान से गए

सईद राही

न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है

सदा अम्बालवी

मौसमों का जवाब दे दीजे

साबिर दत्त

अब उठाओ नक़ाब आँखों से

साबिर दत्त

होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और

साइल देहलवी

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