पर्दाफाश Poetry (page 8)

यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली

बेदम शाह वारसी

ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है

बेदम शाह वारसी

ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक

बेदम शाह वारसी

पर्दे उठे हुए भी हैं उन की इधर नज़र भी है

बेदम शाह वारसी

मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं

बेदम शाह वारसी

ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर

बयान मेरठी

आज-कल के शबाब देखे हैं

बशीर महताब

फ़ासला

बशर नवाज़

अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!

बाक़र मेहदी

जो है चश्मा उसे सराब करो

बकुल देव

तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे

बख़्श लाइलपूरी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

परतव-ए-हुस्न कहीं अंजुमन-अफ़रोज़ तो हो

अज़ीज़ लखनवी

शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की

अज़ीज़ हैदराबादी

शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की

अज़ीज़ हैदराबादी

सुरूर-ए-इश्क़ की मस्ती कहाँ है सब के लिए

अज़ीम कुरेशी

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

ढला जो दिन तो गया नूर-ए-आफ़्ताब भी साथ

अता हुसैन कलीम

मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद

असरार-उल-हक़ मजाज़

रात और रेल

असरार-उल-हक़ मजाज़

लखनऊ

असरार-उल-हक़ मजाज़

ए'तिराफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई

असरार-उल-हक़ मजाज़

आग जो दिल में लगी है वो बुझा दी जाए

असरा रिज़वी

कोशिश है गर उस की कि परेशान करेगा

असलम इमादी

सफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़मोशी से

आसिफ़ रज़ा

चेहरों को बे-नक़ाब समझने लगा था मैं

असग़र मेहदी होश

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