पर्दाफाश Poetry (page 2)

बसंत और होली की बहार

उफ़ुक़ लखनवी

रुख़ से नक़ाब उन के जो हटती चली गई

तौक़ीर अहमद

अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं

तनवीर अहमद अल्वी

यूँ नक़ाब-ए-रुख़ मुक़ाबिल से उठी

ताबिश देहलवी

कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हर नज़र इंतिख़ाब हो जाए

सय्यद सिद्दीक़ हसन

अब्र का माहताब का भी था

सय्यद मुनीर

वज़ीर का ख़्वाब

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा

सय्यद हामिद

सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे

सय्यद अाग़ा अली महर

तुझे क्या हुआ है बता ऐ दिल न सुकून है न क़रार है

सुलैमान अहमद मानी

मैं खो गया तो शहर-ए-फ़न में दस्तियाब हो गया

सुहैल अहमद ज़ैदी

ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे

सुहा मुजद्ददी

अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल

सूफ़ी तबस्सुम

निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

नज़रों से ग़ुबार छट गए हैं

सूफ़ी तबस्सुम

जान दे कर वफ़ा में नाम किया

सूफ़ी तबस्सुम

इस तरह से तर्जुमानी कर गया

सुबहान असद

शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

शुजाअत अली राही

हम पी गए सब हिले न लब तक

शोहरत बुख़ारी

हम पी गए सब हिले न अब तक

शोहरत बुख़ारी

वो रू-ब-रू हों तो ये कैफ़-ए-इज़्तिराब न हो

शिव दयाल सहाब

न जब तक दर्द-ए-इंसाँ से किसी को आगही होगी

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

क़ुल्ज़ुम-ए-उल्फ़त में वो तूफ़ान का आलम हुआ

शेर सिंह नाज़ देहलवी

बातों में ढूँडते हैं वो पहलू मलाल का

शेर सिंह नाज़ देहलवी

बातों में ढूँडते हैं वो पहलू मलाल का

शेर सिंह नाज़ देहलवी

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

ज़ौक़

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