परेशां Poetry (page 10)
हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं
फ़रीद जावेद
तक़ाज़ा
फ़रीद इशरती
हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
फ़ानी बदायुनी
बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला
फ़ानी बदायुनी
या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे
फ़ना बुलंदशहरी
यहाँ से शहर को देखो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शोरिश-ए-ज़ंजीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो अहद-ए-ग़म की काहिश-हा-ए-बे-हासिल को क्या समझे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कभी देखा ही नहीं इस ने परेशाँ मुझ को
फ़ैसल अजमी
उस ने देखा जो मुझे आलम-ए-हैरानी में
फ़ैसल अजमी
ख़ाकम-ब-दहन
फ़हमीदा रियाज़
बैठा है मेरे सामने वो
फ़हमीदा रियाज़
सारबाँ
फ़हीम शनास काज़मी
ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग
एजाज़ रहमानी
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ
एजाज़ गुल
नवेद-ए-यौम-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से ज़ाहिर हो
एजाज़ अासिफ़
तमकीं है और हुस्न-ए-गरेबाँ है और हम
दिल शाहजहाँपुरी
ज़ीस्त बे-वादा-ए-अनवार-ए-सहर है कि जो थी
द्वारका दास शोला
रूह-ए-आवारा
दाऊद ग़ाज़ी
मिरा अहवाल चश्म-ए-यार सूँ पूछ
दाऊद औरंगाबादी
ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने
दर्शन सिंह
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
हम को छेड़ा तो मचल जाएँगे अरमाँ की तरह
डी. राज कँवल
बी.टी-नामा
कर्नल मोहम्मद ख़ान
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