परेशां Poetry (page 9)

ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है

ग़ालिब

नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं

ग़ालिब

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल

ग़ालिब

सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता

ग़ालिब

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

कटी पहाड़ सी शब इंतिज़ार करते हुए

फ़र्रुख़ जाफ़री

अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है

फ़रहत एहसास

हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

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