परेशां Poetry (page 7)

क़स्र-ए-वीराँ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

हासिल का सफ़र

राज नारायण राज़

हम अपने हाल-ए-परेशाँ पे बारहा रोए

रईस अमरोहवी

सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे

रईस अमरोहवी

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई

रईस अमरोहवी

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

परेशाँ करने वालों को परेशाँ कौन देखेगा

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल है अपना न अब जिगर दर-पेश

रहमान जामी

नाकाम मेरी कोशिश-ए-ज़ब्त-ए-अलम नहीं

राही शहाबी

ख़ंदगी ख़ुश लब तबस्सुम मिस्ल-ए-अरमाँ हो गए

इरफ़ान अहमद मीर

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा

इक़बाल कैफ़ी

मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

इक़बाल आबिदी

मेरी फ़रियाद पे रोया है चमन मेरे बा'द

इक़बाल आबिदी

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों

इंशा अल्लाह ख़ान

जिस तरफ़ देखिए बाज़ार उदासी का है

इनआम आज़मी

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम

इफ़्फ़त अब्बास

घूम रहा है पीत का प्यासा

इब्न-ए-इंशा

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ

इब्न-ए-इंशा

दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है

इब्न-ए-इंशा

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता

हिलाल फ़रीद

ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा

हातिम अली मेहर

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