परेशां Poetry (page 11)

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़राहम जिस क़दर इशरत के सामाँ होते जाते हैं

बिस्मिल सईदी

आरज़ूएँ नज़्र-ए-दौराँ नज़्र-ए-जानाँ हो गईं

बिर्ज लाल रअना

आता है कोई लुत्फ़ का सामाँ लिए हुए

बिल्क़ीस बेगम

जाम-ए-गदाई हाथ में ले नित सांज-सवेरे फिरते हैं

भूरे ख़ान आशुफ़्ता

आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते

बेख़ुद देहलवी

इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया

बहज़ाद लखनवी

दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

बहुत ज़ोरों पे वी-सी-आर था कल शब जहाँ मैं था

बेदिल जौनपूरी

रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे

बेदिल हैदरी

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए

बेदम शाह वारसी

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार मुझे

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले

बासित भोपाली

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है

बशीर बद्र

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी

बशीर बद्र

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म

बाक़र मेहदी

क्या ख़बर थी कि कभी बे-सर-ओ-सामाँ होंगे

बाक़र मेहदी

बीसवीं सदी के हम शाइ'र-ए-परेशाँ हैं

बनो ताहिरा सईद

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