रात Poetry (page 57)

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या

हैदर अली आतिश

इस के कूचे में मसीहा हर सहर जाता रहा

हैदर अली आतिश

दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी

हैदर अली आतिश

ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है

हैदर अली आतिश

तमाम रात आँसुओं से ग़म उजालता रहा

हफ़ीज़ मेरठी

यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है

हफ़ीज़ जौनपुरी

याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात

हफ़ीज़ जौनपुरी

याद है पहले-पहल की वो मुलाक़ात की बात

हफ़ीज़ जौनपुरी

उस को आज़ादी न मिलने का हमें मक़्दूर है

हफ़ीज़ जौनपुरी

मुसीबतें तो उठा कर बड़ी बड़ी भूले

हफ़ीज़ जौनपुरी

हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे

हफ़ीज़ जौनपुरी

हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद

हफ़ीज़ जौनपुरी

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी

उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई

हफ़ीज़ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अंधेरा है

हफ़ीज़ जालंधरी

आज की रात

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई

हफ़ीज़ बनारसी

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ

हबीब जालिब

सहाफ़ी से

हबीब जालिब

नन्ही जा सो जा

हबीब जालिब

मुशीर

हबीब जालिब

मुलाक़ात

हबीब जालिब

मेरी बच्ची

हबीब जालिब

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