रात Poetry (page 58)

माँ

हबीब जालिब

दस्तूर

हबीब जालिब

बगिया लहूलुहान

हबीब जालिब

वही हालात हैं फ़क़ीरों के

हबीब जालिब

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ

हबीब जालिब

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो

हबीब जालिब

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

हबीब जालिब

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

हबीब जालिब

भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

हबीब जालिब

करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू

हबीब मूसवी

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

हबीब मूसवी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

गर मैं नहीं तो दर्द का पैकर कोई तो है

हबीब कैफ़ी

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद

हबीब हैदराबादी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

हैं धब्बे तेग़-ए-क़ातिल के जिसे धोने नहीं देते

हबीब आरवी

तमाम रात बुझेंगे न मेरे घर के चराग़

हबाब तिर्मिज़ी

उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है

हबाब हाश्मी

ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है

ग्यान चन्द मंसूर

एक मैं हूँ और लाख मसाइल ख़ुदा गवाह

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है

गुलज़ार

भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में

गुलज़ार

वो जो शाएर था

गुलज़ार

रूह देखी है कभी!

गुलज़ार

एक दौर

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

गुलज़ार

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की

गुलज़ार

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले

गुलज़ार

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