कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ
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तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
वही हालात हैं फ़क़ीरों के
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
मुलाक़ात
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ
ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम