सबा Poetry (page 17)

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बलराज कोमल

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था

ज़फ़र

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

ज़फ़र

क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं

ज़फ़र

इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है

ज़फ़र

बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द

बदनाम नज़र

हयूला

अज़ीज़ तमन्नाई

पस-ए-तर्क-ए-इश्क़ भी उम्र-भर तरफ़-ए-मिज़ा पे तरी रही

अज़ीज़ क़ैसी

वहशत-ए-दिल का अजब रंग नज़र आता है

अज़ीज़ हैदराबादी

निगाह-ए-नाज़ में हया भी है

अज़ीज़ हैदराबादी

बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ

अज़ीज़ हैदराबादी

जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर

अज़ीज़ एजाज़

उतर कर पानियों में चाँद महव-ए-रक़्स रहता है

अज़हर नक़वी

समझ में आ तो सकती है सबा की गुफ़्तुगू भी

अज़हर अदीब

लाई न सबा बू-ए-चमन अब के बरस भी

अज़ीम मुर्तज़ा

ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था

आज़ाद गुलाटी

जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर

आज़ाद गुलाटी

कोई न देखे गूँज हवा की

अय्यूब ख़ावर

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

अय्यूब ख़ावर

इक तुम कि हो बे-ख़बर सदा के

अय्यूब ख़ावर

बर्ग-ए-गुल शाख़-ए-हिज्र का कर दे

अय्यूब ख़ावर

न पूछो कैसे शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है

औलाद अली रिज़वी

दुनिया से हुए बैठे हो रू-पोश ऐ जाना

आतिफ़ ख़ान

मिस्ल-ए-बाद-ए-सबा तेरे कूचे में ऐ जान-ए-जाँ आए हैं

अतहर नफ़ीस

हम भी बदल गए तिरी तर्ज़-ए-अदा के साथ साथ

अतहर नफ़ीस

किस दर्जा मिरे शहर की दिलकश है फ़ज़ा भी

अतहर नादिर

दिल तो बरसाता है हर रोज़ ही ग़म के सावन

अतहर अज़ीज़

शम-ए-रह-गुज़र

असरार-उल-हक़ मजाज़

दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले

असलम अंसारी

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