छाया Poetry (page 11)

चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ

रूही कंजाही

ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का

रियाज़ ख़ैराबादी

नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग

रियाज़ ख़ैराबादी

क़ब्र पर होवें दो न चार दरख़्त

रिन्द लखनवी

न कोई दोस्त न दुश्मन अजीब दुनिया है

रिफ़अत सरोश

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

वक़्त ख़ुश-ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए

रियाज़ मजीद

उस ने इक दिन भी न पूछा बोल आख़िर किस लिए

रियाज़ मजीद

दर्द ग़ज़ल में ढलने से कतराता है

रियाज़ मजीद

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

कभी ख़ुर्शीद-ए-ज़िया-बार हूँ मैं

राज़ी अख्तर शौक़

ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या

रज़ा मौरान्वी

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

रज़ा मौरान्वी

हर अक्स ख़ुद एक आइना है

रज़ा हमदानी

है ज़ेर-ए-ज़मीं साया तो बाला-ए-ज़मीं धूप

रौनक़ टोंकवी

इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए

रौनक़ नईम

ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए

रौनक़ नईम

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

दोस्त के शहर में जब मैं पहुँचा शहर का मंज़र अच्छा था

रासिख़ फारानी

ये मोहब्बत का वार है साहब

राशिद क़य्यूम अनसर

ये जो मेरे अंदर फैली ख़ामोशी है

राशिद क़य्यूम अनसर

कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता

राशिद क़य्यूम अनसर

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

राशिद मुफ़्ती

किसी की जीत का सदमा किसी की मात का बोझ

राशिद मुफ़्ती

कोई साया न शजर याद आया

राशिद हामिदी

बस एक बार तिरा अक्स झिलमिलाया था

राशिद अनवर राशिद

तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए

राशिद अमीन

जुज़ और क्या किसी से है झगड़ा फ़क़ीर का

राशिद अमीन

साया

राशिद आज़र

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