छाया Poetry (page 12)

लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं

रशीद उस्मानी

ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं

रशीद क़ैसरानी

ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है

रशीद क़ैसरानी

उठ गई आज चाँद की डोली

रशीद क़ैसरानी

सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है

रशीद क़ैसरानी

पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा

रशीद क़ैसरानी

मुँह किस तरह से मोड़ लूँ ऐसे पयाम से

रशीद क़ैसरानी

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

दिल हमारा जानिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम आएगा

रशीद लखनवी

तेरे आने का इंतिज़ार रहा

रसा चुग़ताई

मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है

रसा चुग़ताई

'मीर'-जी से अगर इरादत है

रसा चुग़ताई

कोई ता'मीर की सूरत निकालो

रसा चुग़ताई

जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है

रसा चुग़ताई

है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है

रसा चुग़ताई

सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन

रऊफ़ अमीर

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

राम रियाज़

किस ने कहा था शहर में आ कर आँख लड़ाओ दीवारों से

राम प्रकाश राही

रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दिए जला के हवाओं के मुँह पे मार आया

रख़शां हाशमी

सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं

राजेन्द्र नाथ रहबर

चोर की दुआ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

कम-निगही

राज नारायण राज़

क्या बात थी कि जो भी सुना अन-सुना हुआ

राज नारायण राज़

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

रईस फ़रोग़

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