छाया Poetry (page 14)

वो रश्क-ए-मेहर-ओ-क़मर घात पर नहीं आता

इमदाद अली बहर

शोर है उस सब्ज़ा-ए-रुख़्सार का

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं

इमदाद अली बहर

कभी देखें जो रू-ए-यार दरख़्त

इमदाद अली बहर

सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है

इमाम बख़्श नासिख़

नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह

इफ़्तिख़ार नसीम

इस से फूलों वाले भी आजिज़ आ गए हैं

इदरीस बाबर

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

इब्न-ए-इंशा

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

इस जहाँ में तो अपना साया भी

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ

हिमायत अली शाएर

जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

दरिया तूफ़ान बह रहा है

हातिम अली मेहर

मैं घर से ज़ेहन में कुछ सोचता निकल आया

हसन निज़ामी

रूह का लम्बा सफ़र है एक भी इंसाँ का क़ुर्ब

हसन नईम

ख़ेमा-ए-याद

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

हसन नईम

सर उठा कर न कभी देखा कहाँ बैठे थे

हसन कमाल

तिरी जुदाई ने ये क्या बना दिया है मुझे

हसन जमील

क्या गुमाँ था कि न होगा कोई हम-सर अपना

हसन अकबर कमाल

ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है

हसन अकबर कमाल

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