रेगिस्तान Poetry (page 28)
तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
सोचते रहने से क्या क़िस्मत का लिक्खा जाएगा
फ़र्रुख़ जाफ़री
जाने क्या ऐसा उसे मुझ में नज़र आया था
फ़र्रुख़ जाफ़री
इस राज़ के बातिन तक पहुँचा ही नहीं कोई
फ़र्रुख़ जाफ़री
रात काफ़ी लम्बी थी दूर तक था तन्हा मैं
फ़ारूक़ शफ़क़
में इक गाँव का शाएर हूँ
फ़ारूक़ नाज़की
गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है
फ़ारूक़ नाज़की
हर नए मोड़ धूप का सहरा
फ़ारूक़ मुज़्तर
ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई
फ़ारूक़ बाँसपारी
कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे
फ़ारिग़ बुख़ारी
दिल के घाव जब आँखों में आते हैं
फ़ारिग़ बुख़ारी
वो खुल कर मुझ से मिलता भी नहीं है
फ़रहत क़ादरी
रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले
फ़रहत क़ादरी
मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे
फ़रहत नदीम हुमायूँ
तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
फ़रहत एहसास
बिछड़े घर का साया
फ़रहत एहसास
सहरा के संगीन सफ़र में आब-रसानी कम न पड़े
फ़रहत एहसास
मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
फ़रहत एहसास
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम
फ़रहत एहसास
ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
फ़रहत एहसास
ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा
फ़रहत एहसास
जिस्म की कुछ और अभी मिट्टी निकाल
फ़रहत एहसास
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए
फ़रहत एहसास
इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच
फ़रहत एहसास
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
फ़रहत एहसास
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
फ़रहत एहसास
गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है
फ़रहत एहसास
इक हवा आई है दीवार में दर करने को
फ़रहत एहसास
चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना
फ़रहत एहसास
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