रेगिस्तान Poetry (page 5)

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

जुनूँ-आवर शब-ए-महताब थी पी की तमन्ना में

वली उज़लत

जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात

वली उज़लत

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़

वली उज़लत

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम

वाली आसी

वो जो वीरान फिरा करता है

वकील अख़्तर

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह

वाहिद प्रेमी

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

ख़ुश्क आँखों से उठी मौज तो दुनिया डूबी

वहीद अख़्तर

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

ज़र्रों की बातों में आने वाला था

विकास शर्मा राज़

रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे

विकास शर्मा राज़

न हम-सफ़र है न हम-नवा है

विकास शर्मा राज़

उस गली तक सड़क रही होगी

विजय शर्मा अर्श

नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे

विजय शर्मा अर्श

बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है

विजय शर्मा अर्श

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

बहुत दिनों में हम उन से जो हम-कलाम हुए

वारिस किरमानी

तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर

वफ़ा मलिकपुरी

वही हादसों के क़िस्से वही मौत की कहानी

वफ़ा बराही

यास ओ उमीद

उरूज क़ादरी

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