व्यक्ति Poetry (page 35)

मिट्टी से बग़ावत न बग़ावत से गुरेज़ाँ

अहमद कामरान

चराग़ ताक़-ए-तिलिस्मात में दिखाई दिया

अहमद कामरान

अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से

अहमद जावेद

शीराज़ की मय मर्व के याक़ूत सँभाले

अहमद जहाँगीर

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं

अहमद फ़राज़

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से

अहमद फ़राज़

कभी 'फ़राज़' से आ कर मिलो जो वक़्त मिले

अहमद फ़राज़

इस से बढ़ कर कोई इनआम-ए-हुनर क्या है 'फ़राज़'

अहमद फ़राज़

दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है

अहमद फ़राज़

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

दीवार-ए-गिर्या

अहमद फ़राज़

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

अहमद फ़राज़

यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा

अहमद फ़राज़

उस मंज़र-ए-सादा में कई जाल बंधे थे

अहमद फ़राज़

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

अहमद फ़राज़

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

अहमद फ़राज़

क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता

अहमद फ़राज़

जब हर इक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे

अहमद फ़राज़

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

अहमद फ़राज़

इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक

अहमद अज़ीम

वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं

अहमद अता

इक रात मैं सो नहीं सका था

अहमद अता

चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार

अहमद अशफ़ाक़

तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए

अहमद अशफ़ाक़

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आज

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

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